भाषा विचार
मुहावरों के प्रयोग में सावधानी अधिक रखनी पड़ती है। मुहावरे के शब्दों में किसी भी तरह का फेरबदल नहीं किया जाना चाहिए। अन्यथा मुहावरा अपना अर्थ खो देगा और पाठक को बात भी समझ में नहीं आएगी। एक मुहावरा है "नाच न जाने आँगन टेढ़ा।" इसमें न आप "नाच" को बदल सकते हैं, न "आँगन" को और न ही "टेढ़ा" को। यह नहीं कह सकते हैं कि "नाच न जाने आँगन तिरछा।" एक और उदाहरण है "फूलकर कुप्पा हो जाना।" कुप्पा को लिंगभेद में "कुप्पी" या वचन भेद में "कुप्पे" नहीं कहा जा सकता है। "कुप्पा" की जगह "गुब्बारा" या "फुटबॉल" जैसा कोई और शब्द भी नहीं रख सकते हैं। हिन्दी की एक पुस्तक में इसी प्रकार का एक दिलचस्प उदाहरण पढ़ने को मिला। "उसके गले में दर्द है।" और इसी बात का दूसरा प्रकार "उसके गले में कितना दर्द है।" पहले वाक्य में "दर्द" का अर्थ "दर्द" ही है यानी शारीरिक तकलीफ से है। जबकि दूसरे वाक्य में "दर्द" का उपयोग विशेष अर्थ में किया गया है, मुहावरे के रूप में गले में कितना दर्द है, यानी उस रस, उस भाव को पैदा करने वाले तत्व से आशय है। "जल जाना" भी ऐसा ही एक और उदाहरण है। "गरम चाय से जीभ "जल" गई।" यानी शारीरिक पीड़ा हुई। इसे इस तरह प्रयोग करें, "वह उन्नाति देख "जल" गया।" यहाँ जल जाने का अर्थ शारीरिक पीड़ा से नहीं है। ऐसे कई प्रयोग हैं जो विशिष्ट होते हैं और अर्थ भी कुछ खास देते हैं। -क्रमशः
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