रविवार, 6 फ़रवरी 2011

शेरो – शायरी

सखियों से मेरी बातें किया करते हैं,
जिंदगी से हमारी हमेशा खेला करते हैं।
जमीन पर मेरा नाम लिखते और मिटाते हैं,
उनका गुजरता वक्त है, हम मिट्टी में मिल जाते हैं।


नफ़रतों की नहीं कोई बयार है नारी,

मां की ममता है, बहन का प्यार है नारी।
ये नए रिश्तों को बखूबी निभा लेती,
आन पे बन आए तो तलवार है नारी।


कुछ लोग जरा-सा सबर नहीं रखते

इंसान पहचानने की नजर नहीं रखते
चीर तो सकते हैं पहाड़ों का सीना
हम सच बोलने का मगर जिगर नहीं रखते।
यह रास्ता आख़िर इतना वीरान-सा क्यूं है
उसका वह घर आख़िर सुनसान-सा क्यूं है
वो मिट्टी का टीला कहीं क़ब्र तो नहीं
उस पर खिला गुलाब बेजान-सा क्यूं है।


ज़ख्म देने का अंदाज़ कुछ ऐसा है
ज़ख्म देकर पूछते हैं अब हाल कैसा है?
ज़हर देकर कहते हैं पीना होगा
जब पी गए ज़हर, तो कहते हैं जीना होगा।


जब-जब प्यास लगती है
उनके आने की आस लगती है
प्यार में इतना दीवाने हुए हम
हर महिला हमें सास लगती है।


इबादत की तरह यह काम करता हूं।
मैं रोज़ सबको सलाम करता हूं।
जिनकी दुआओं ने मुझे संवार दिया
मैं ये ज़िंदगी उनके नाम करता हूं।


दिल का चैन चुरा ले गया कोई
आंखों से नींद उड़ा ले गया कोई
इंतजार की आदत नहीं थी फिर भी
इंतजार करना सिखा गया कोई।


पलकों पे अपनी बिठाया है हमने उसे
बड़ी दुआओं के बाद पाया है हमने उसे
इतनी आसानी से नहीं मिली है वह हमें
जूलॉजीकल पार्क से चुराया है हमने उसे


चलो अब चल कर/कोई सूरत निकालें
उधार वालों का पता लगाने की
जिन्होंने की नहीं कोशिश
हमारी गली आने की/लोग तो कहते हैं यही
कि उनको आदत है
उधार लेके भूल जाने की।

 

तुम्हे भुलाने की हर कोशिश मेरी न जाने क्यों नाकाम रही
ऐसा उलझा हूं यादों में तेरी न सुबह रही मेरी, न मेरी शाम रही


ख्वाबों की हर एक गली देखी
बाग़ों में खिलती हर एक कली देखी
जो कहते थे, कभी न भूल पाएंगे
उसी के घर अपनी तस्वीर जली देखी।


वो चल पड़े होंगे अपने घर से
महक उठा गरीबख़ाना इस खबर से
और कब तक इंतज़ार किया जाए
पूछ रही हैं नज़रें, हर इक नज़र से

एक हस्ती है जो जान है मेरी
जो आन से भी बढ़कर मान है मेरी।
खुदा हुक्म दे तो कर दूं सजदा उसे
क्योंकि वो कोई और नहीं मां है मेरी।


थक सा गया है
मेरी चाहतों का वजूद,
अब कोई अच्छा भी लगे तो
हम इज़हार नहीं करते।


आज भी उसका इंतजार है
तस्वीर उसकी दिल में बरकरार है।
वह नहीं आता है
उसकी यादों की ही भरमार है।

6 टिप्‍पणियां:

  1. "कुछ लोग जरा-सा सबर नहीं रखते
    इंसान पहचानने की नजर नहीं रखते
    चीर तो सकते हैं पहाड़ों का सीना
    हम सच बोलने का मगर जिगर नहीं रखते"

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  2. लेखन अपने आप में ऐतिहासिक रचनात्मक कायर् है। आशा है कि आप इसे लगातार आगे बढाने को समपिर्त रहें। शानदार पेशकश।

    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
    सम्पादक-प्रेसपालिका (जयपुर से प्रकाशित हिंदी पाक्षिक)एवं
    राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
    0141-2222225 (सायं 7 सम 8 बजे)
    098285-02666

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  3. हिन्दी ब्लाग जगत में आपका स्वागत है, कामना है कि आप इस क्षेत्र में सर्वोच्च बुलन्दियों तक पहुंचें । आप हिन्दी के दूसरे ब्लाग्स भी देखें और अच्छा लगने पर उन्हें फालो भी करें । आप जितने अधिक ब्लाग्स को फालो करेंगे आपके अपने ब्लाग्स पर भी फालोअर्स की संख्या बढती जा सकेगी । प्राथमिक तौर पर मैं आपको मेरे ब्लाग 'नजरिया' की लिंक नीचे दे रहा हूँ आप इसका अवलोकन करें और इसे फालो भी करें । आपको निश्चित रुप से अच्छे परिणाम मिलेंगे । धन्यवाद सहित...
    http://najariya.blogspot.com/

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  5. इस सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्‍लॉग जगत में स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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  6. आपके ब्लॉग का चर्चा है इस लिंक पर, इसे क्लिक कीजिए और देखिए ‘ब्लॉग की ख़बरें‘
    किशोर पारीख जी का ब्लॉग

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