
सर्वप्रथम आप अपनी पृष्ठभूमि के विषय में बताइए..?
मैं मूल रूप से तमिल ब्राह्मण परिवार से हूं। मेरे पिता खगोलविद एवं उद्योगपति थे। वे 17 भाषाओं के ज्ञाता और विद्वान पुरुष थे। मेरी मां गणित और भौतिकी में एमएससी हैं। हम चार बहनें हैं, पिता से हमें आध्यात्मिक एवं भारतीय संस्कृति की और मां से आत्मनिर्भरता और आर्थिक स्वावलांन की सीख मिली।
मंच संचालन के क्षेत्र में पदार्पण कैसे हुआ...?
घर में श्लोक पाठ के दौरान मां ने मेरे उच्चारण और आवाज की स्पष्टता पर सबसे पहले गौर किया। इसके बाद हिंदी साहित्य अकादमी के अनंत मराल शास्त्री ने मेरे उच्चारण की तारीफ करते हुए आल इंडिया रेडियो में आडिशन देने की सलाह दी। दस साल की अवस्था में पहली बार मैंने बाल सभा में कार्यक्रम प्रस्तुत किया। उस समय अर्चना त्यागी, कार्यक्रम अधिकारी पद पर थीं। मेरी हिंदी अच्छी नहीं थी, हिंदी की शिक्षा के लिए मां ने एक शिक्षक भी नियुक्त कर दिया। मैं अच्छी स्कॉलर रही हूं, साइकोलॉजी से एमफिल करने के बाद तीन साल मैंने गवर्नमेंट गर्ल्स डिग्री कॉलेज, भोपाल में अध्यापन भी किया है। उसी दौरान मेरा संवाद कौशल देखते हुए प्रिंसिपल मैडम ने मोटिवेशनल क्लास में स्पीच देने को कहा। इसके बाद से मैं हर छोटे बड़े कार्यक्रमों में मंच संचालन का दायित्व निभाने लगी। प्रशंसा और आग्रहों ने मुझे बड़े मंचों तक पहुंचा दिया।
एंकरिंग में आपकी सफलता का क्या राज है, एंकरिंग के आवश्यक पहलुओं के विषय में बताएं..?
एंकरिंग में आपकी सफलता का क्या राज है, एंकरिंग के आवश्यक पहलुओं के विषय में बताएं..?
एंकरिंग के लिए वाणी में मधुरता और विचारों में संयम जरूरी है और यही मेरा यूएसपी है। एंकरिंग के लिए असरकारी संवाद का होना बहुत आवश्यक है। वाणी ऐसी होनी चाहिए जो दुख में औषधि का काम करे, सुख में मिठास दे, प्रेरणा दे। इस क्षेत्र में सफलता हासिल करने के लिए अध्ययन एवं अनुभव दोनों की जरूरत होती है। इसके साथ ही संवाद कौशल जरूरी है। चूंकि, मैंने साइकोलॉजी से एमफिल तक की पढ़ाई की है, जिसकी वजह से कई बार श्रोता की आंखों को देखकर पता चल जाता है कि उसका मनोभाव क्या है।
आपने कई बड़े अवसरों पर एंकरिंग का दायित्व निभाया है, करियर का सबसे सुखद क्षण कौन सा था..?लाल किले की प्राचीर से भारत के स्वतंत्रता संग्राम के 150 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम में एंकरिंग अभी तक के करियर का सबसे सुखद क्षण था। इसके लिए मैंने बहुत तैयारी की थी। अंत समय तक ऐसा लग रहा था, यह असाइनमेंट मुझे नहीं मिलेगा। एक समय तो मेरी आंखे नम भी हो गई थीं, लेकिन मेरी लिखी स्क्रिप्ट ने मुझे लाल किले की प्राचीर से एंकरिंग का अवसर प्रदान किया। मेरे जीवन का वह सबसे अविस्मरणीय पल था.
आपने करियर में एक मुकाम हासिल किया है, इसका श्रेय आप किसे देना चाहेंगी...?
आज मैं जो कुछ भी हूं अपनी मां-पिता की बदौलत हूं, परंतु मेरे करियर को दिशा देने वाली मेरी मां हैं। सही मायने में वे मेरी रोल मॉडल हैं। वे अद्भुत हृदय की महिला हैं। उनमें सफलता के बीच संतुलन स्थापित करने की अद्भुत क्षमता है। सभी बहनों के अंदर ज्ञान की कीमत और समझ को विकसित करने में उनका महत्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने बताया कि बौद्धिक, मानसिक क्षमता का प्रदर्शन जरूरी है। सत्य से नहीं डरना चाहिए। मन और हृदय साफ होना चाहिए। अगले क्षण का पता नहीं है, इसलिए आज का काम आज ही समाप्त होना चाहिए। उनकी बातें, हर पल मेरा मार्गदर्शन करती हैं।
आपने करियर में एक मुकाम हासिल किया है, इसका श्रेय आप किसे देना चाहेंगी...?
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