सोमवार, 30 अगस्त 2010

विलुप्त होती भाषाएँ

विश्व भर में संकटग्रस्त सत्ताईस सौ भाषाओं में असम की भी सत्रह भाषाएँ हैं, जो विलुप्त हो रही हैं। इस खबर को प्रमुखता से प्रकाशित करते हुए "असमिया दैनिक जनसाधारण" अपनी विशेष टिप्पणी में लिखता है कि असम की इन बोलियों का प्रचलन कम होता जा रहा है और नई पीढ़ी को इसके बारे में कुछ भी पता नहीं है। अखबार लिखता है कि जिस भाषा का उपयोग लोग मातृभाषा के रूप में करना बंद कर देते हैं, वह भाषा विलुप्त होने लगती है। यूनेस्को की एक रिपोर्ट के हवाले से अखबार लिखता है कि असम की देवरी, मिसिंग, कछारी, बेइटे, तिवा और कोच राजवंशी सबसे संकटग्रस्त भाषाएँ हैं। इन भाषाओं को बोलने वाली पीढ़ी समाप्त प्राय है और नई पीढ़ी उसे ग्रहण नहीं कर रही है, क्योंकि घर में उनका प्रयोग बहुत कम हो गया है। अखबार लिखता है कि करीब अट्ठाईस हजार लोग बातचीत में देवरी भाषा का प्रयोग करते हैं, जबकि मिसिंग भाषी लोगों की संख्या राज्य में साढ़े पाँच लाख है। बेइटे भाषी की संख्या भी करीब उन्नीस हजार बची है। असम की आठ असुरक्षित भाषाएँ हैं, जिनमें बोडो, कार्बी, डिमासा, विष्णुप्रिया, मणिपुरी और काकबरक भाषाएँ शामिल हैं। हालाँकि इन भाषाओं को बोलने वालों की संख्या फिलहाल कई लाख है। इन भाषाओं के विलुप्त होने से उस भाषा से जुड़ी संस्कृति भी विलुप्त हो जाएगी। 

रविशंकर रवि

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