बुधवार, 1 सितंबर 2010

के अन्दर यानी

कहीं जोश, कहीं संकोच, कहीं अज्ञान, कहीं कुतर्क के कारण हिन्दी भाषा में ऐसे अनेक प्रयोग चल रहे हैं जो व्याकरण की दृष्टि से उचित नहीं हैं, न ही भावार्थ की दृष्टि से। कुछ मामलों में तो यह तय नहीं हो पाया है कि सही क्या है, लेकिन ऐसे मामलों की संख्या अधिक नहीं है। ज्यादा गड़बड़ आम, बोलचाल की हिन्दी में हो रही है, जिसका असर लेखन पर भी पड़ रहा है। हिन्दी पखवाड़े को मनाने का तरीका क्या हो, इस बारे में विचार-विमर्श के बाद तय हुआ कि कर्मकांड की बजाय भाषा के प्रयोग पर कुछ सामग्री उपलब्ध कराई जाए ताकि सुधार की दिशा में व्यावहारिक ढंग से आगे बढ़ना संभव हो जाए। अँगरेजी में सोचने और हिन्दी में लिखने की वजह से भी अनेक बार विसंगतियाँ, अशुद्धियाँ भाषा में प्रवेश कर जाती हैं।

एक उदाहरण है "के अंदर" के उपयोग का। "जयपुर  के अंदर भारी वर्षा से जगह-जगह पानी भर गया।" दरअसल "में" की जगह "के अंदर" का प्रयोग कुछ ज्यादा ही स्पष्ट करने के जोश में या अज्ञानता के कारण कर दिया जाता है। "नदी के अंदर एक मंदिर है।" किस अर्थ की ओर संकेत करना चाहते हैं? नदी को खाली कर, उसमें खुदाई करने पर मंदिर मिला या नदी के मध्य में एक मंदिर है जो बाहर से भी दिखाई पड़ता है? जयपुर यदि एक सुरंग हो तो वर्षा से उसके अंदर पानी भर जाएगा लेकिन वह शहर है और उसमें जगह-जगह पानी भरेगा, न कि उसके अंदर। सामान्य ज्ञान की पुस्तक के अंदर बहुत उपयोगी जानकारियाँ हैं। "में" को "के अंदर" की जगह रखकर पढ़िए, बात कितनी स्पष्ट, सरल और सीधी हो जाती है! "में" की जगह "के अंदर (या के भीतर)" पढ़कर उसमें "घुस जाने" का एहसास होता है। (क्रमशः)

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