रविवार, 5 सितंबर 2010

सुनने की कला

सुनने की कला

लंदन में एचजी वेल्स ने अपने कुछ मित्रों को भोजन पर बुलाया। इनमें बनार्ड शॉ, बर्ट्रांड रसल, प्रो. जोड़ सरीखे व्यक्ति थे। इसमें डॉ राधाकृष्णन को भी बुलाया गया था। यह मंडली एक-दूसरे से भलीभाँति परिचित थी। तीन घंटे विभिन्ना विषयों पर वाद-विवाद चलता रहा, पर कृष्णन एक भी शब्द नहीं बोले। बस ध्यान से सबकी बातें सुनते रहे। जब किसी ने इस बात की ओर सबका ध्यान आकर्षित किया तो उनका विनम्र जवाब था कि यदि सब वक्ता होते तो श्रोता कहाँ से आता।

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