सोमवार, 6 सितंबर 2010

बात छोटी सी लेकिन...

मात्रा, रफार, हलंत आदि लगाते वक्त यह कल्पना नहीं होती कि इसका अर्थ में कितना महत्व है। छोटी यानी "इ" की मात्रा की जगह बड़ी "ई" की मात्रा अर्थ बदल देती है, इसका भान तब होता है जब उस लिखी या छपी हुई सामग्री से अनर्थ सामने आता है। उदाहरण अनेक हैं। यहाँ उनमें से कुछ शब्दों का ही उल्लेख है। इन शब्दों के साथ वे शब्द भी हैं, जो इस परिवर्तन के कारण कुछ और ही अर्थ देते हैं। "अगम" का अर्थ दुर्लभ लेकिन यदि अ में आ की मात्रा लगाकर इसे "आगम" लिखा जाए तो अर्थ होगा उत्पत्ति, शास्त्र। जिसका तल न हो वह "अतल" लेकिन जिसके समान दूसरा न हो वह "अतुल"। एक मात्रा ने अर्थ में कितना अंतर कर दिया! हवा और आग में जो अंतर है वह अनल (आग) और अनिल (वायु) के बीच "इ" की एक मात्रा पर टिका है। "चिता" और "चीता" में फर्क स्पष्ट है। इसी तरह "आदि" और "आदी" में, "ओर" तथा "और" में, "किला" और "कीला" में, "नाहर" (बाघ) तथा "नहर" के उदाहरण गिनाए जा सकते हैं। मात्रा की जानकारी न होने या लापरवाही से यदि ऐसे शब्दों का उपयोग किया जाए तो अर्थ का अनर्थ हो सकता है। कुछ शब्द ऐसे हैं, जो गलत लिखे जाते हैं परंतु प्रचलन के कारण सही शब्द की जगह जमकर बैठ गए हैं। "आर्शीवाद" लिखना आम है जबकि सही है "आशीर्वाद"। "उज्वल" लिखा जाता है, सही है "उज्ज्वल"। "खिलाफत" उर्दू का शब्द है। अर्थ है खलीफा की भूमिका, उस्ताद की नीति लेकिन यह "मुखालिफत" की जगह विरोध के अर्थ में इतना जमकर बैठा है कि हटाना मुश्किल है। "फी" उर्दू का है, अर्थ है प्रति। "सदी" का अर्थ है सौ वर्ष। "फीसदी" ने "फीसद" की जगह हथिया रखी है जिसका अर्थ है "प्रति सौ" या "प्रतिशत"

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