शनिवार, 11 सितंबर 2010

हिन्दू शब्द किसी भारतीय ग्रन्थ में नहीं आता, पहली बार इसका इस्तेमाल ईरान में हुवा, भारत में कविता में सम्भवतः पहली बार कबीर ने हिन्दू शब्द का प्रयोग किया,...अपने देश दो चीज़ें चलती हैं, एक जो इम्पोर्टेड हो और दूसरी जो समझ न आये, हिन्दू शब्द में ये दोनों विशेषताएं थी सो हिन्दू हिट हो गया

तंत्री नाद कवित्त रस सरस नाद रति रंग । अनबुढे बूढे, तरे जो बूढे सब अंग । "
अर्थात संगीत,कविता आदि कलाए ऐसी हैं कि इनमे जो पूरी तरह से डूब गया वह तर गया और जो आधा-अधुरा डूबा ,वह डूब गया अर्थात उसे यह कलाए प्राप्त नही हो सकी ,वह असफल हो गया ।

किसी से घृणा एक जैसी शिद्दत से आप जीवन भर नहीं कर सकते , पर प्यार ? प्यार आप इस जन्म तो क्या, जन्म जन्मान्तर तक कर सकते हैं क्योंकि वो ही शाश्वत ईश्वर का रूप है

रहिमन जिव्हा बावरी कह गयी स्वर्ग पाताल, आपु तो कही भीतर रही जूती खात कपाल .. रहीम कहते है कि जीभ तो बावरी होती है स्वर्ग से लेकर पाताल तक किसी भी विषय पे बोल जाती है, कहने के बाद खुद तो भीतर छुप जाती है और जूते सर पे पड़ते हैं

कलाकार का जीवन यानी ताम्बे का बर्तन , मांजते रहेंगे तो सोने से ज्यादा चमचमायेगा, छोड़ देंगे तो इतना काला हो जायेगा के पहचाने नहीं जायेंगे

बूँद समाये समुद में ये जाने सब कोय, समुद समाये बूँद में जाने बिरला होय

मन में रखूं तो मन जले, कहूँ तो मुख जल जाय, गूंगे को सपनो भयो समझ समझ पछताय

एक ख़ूबसूरत शेर शिकेब जलाली का,
'आके पत्थर तो मेरे सहन में दो चार गिरे , जितने उस पेड़ के फल थे पसे - दीवार गिरे

दीपावली अंतर्मुखी पर्व है, अपनी उपलब्धियों और त्रुटियों के आकलन करने का पर्व, आत्म विश्लेषण के बाद ही
आलोकित हो उठता है संसार

ना मैं हिंदू ,ना सिक्ख ,ना मुसलमान हूँ कोई मजहब नही मेरा फ़क़त इन्सान हूँ
मुझे क्यो बांटते हो कौम और जुबानो में मै सिर से पावँ तलक सिर्फ हिंदुस्तान हूँ
तेरी नज़र में राह का एक दरख्त सही न जाने कितने परिंदों का एक मकान हूँ

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