सोमवार, 25 अक्तूबर 2010

दीपों का उजियारा, घट घट में भर जाए

दीपों का उजियारा, घट घट में भर जाए ।

मानस का अंधियारा, हर मन से मिट जाए।

आतंकवाद का नाश, किंवा अंत हो -

इन्सानियत का, भाव सदा यश पाए।



दीप हो, स्नेह हो, बाती हो तो

मिलता प्रकाश है।

अंधियारा मिट जाता, छाता उल्लास है।

इस मेल में, ऊर्जा है, शक्ति है-

प्रेम जिससे झरता है, बढ़ता विश्वास है ।



सबको रोटी, सबको कपड़ा,

सबको मिले मकान।

भारतमाता की विश्व में, दिन दूनी हो शान।

लोग गुनें, रोजगार बढ़े,

दिवाली का ये उपकार हो-

की जगती आँखों का,

यह स्वप्न भी साकार हो।

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