रविवार, 14 अप्रैल 2013

नशा करना बुरी बात है। :: 

जंगल में एक चीता बीड़ी पी रहा था। तभी एक चूहा वहां पर आया और बोला, " भाई, नशा करना छोड़ दो, आओ मेरे साथ और देखो जंगल कितना सुन्दर है! "

चीते ने बीड़ी फेंक दी और चूहे के पीछे चल दिया।

आगे चलकर एक हाथी मिला जो कोकीन ले रहा था। चूहे ने हाथी से कहा " भाई, नशा करना बुरी बात है। आओ मैं तुम्हें दिखाता हूं कि हमारा जंगल कितना सुन्दर है। "

हाथी भी कोकीन फेंक कर चूहे के पीछे-पीछे चल दिया। आगे चले तो देखा एक शेर व्हिस्की का पेग मारने जा रहा है।

चूहे ने शेर को भी ज्ञान दिया। चूहे की बात सुनकर शेर ने पेग रखा। फिर उस को चार-पांच चांटे जड़ दिए।

हाथी को गुस्सा आ गया अबूर बोला " क्यों मारा उसे..? "

शेर ने कहा :-
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" इस चूहे ने कल भी भांग पीकर मुझे 3 घंटे जंगल में घुमाया था।"

रविवार, 6 फ़रवरी 2011

शेरो – शायरी

सखियों से मेरी बातें किया करते हैं,
जिंदगी से हमारी हमेशा खेला करते हैं।
जमीन पर मेरा नाम लिखते और मिटाते हैं,
उनका गुजरता वक्त है, हम मिट्टी में मिल जाते हैं।


नफ़रतों की नहीं कोई बयार है नारी,

मां की ममता है, बहन का प्यार है नारी।
ये नए रिश्तों को बखूबी निभा लेती,
आन पे बन आए तो तलवार है नारी।


कुछ लोग जरा-सा सबर नहीं रखते

इंसान पहचानने की नजर नहीं रखते
चीर तो सकते हैं पहाड़ों का सीना
हम सच बोलने का मगर जिगर नहीं रखते।
यह रास्ता आख़िर इतना वीरान-सा क्यूं है
उसका वह घर आख़िर सुनसान-सा क्यूं है
वो मिट्टी का टीला कहीं क़ब्र तो नहीं
उस पर खिला गुलाब बेजान-सा क्यूं है।


ज़ख्म देने का अंदाज़ कुछ ऐसा है
ज़ख्म देकर पूछते हैं अब हाल कैसा है?
ज़हर देकर कहते हैं पीना होगा
जब पी गए ज़हर, तो कहते हैं जीना होगा।


जब-जब प्यास लगती है
उनके आने की आस लगती है
प्यार में इतना दीवाने हुए हम
हर महिला हमें सास लगती है।


इबादत की तरह यह काम करता हूं।
मैं रोज़ सबको सलाम करता हूं।
जिनकी दुआओं ने मुझे संवार दिया
मैं ये ज़िंदगी उनके नाम करता हूं।


दिल का चैन चुरा ले गया कोई
आंखों से नींद उड़ा ले गया कोई
इंतजार की आदत नहीं थी फिर भी
इंतजार करना सिखा गया कोई।


पलकों पे अपनी बिठाया है हमने उसे
बड़ी दुआओं के बाद पाया है हमने उसे
इतनी आसानी से नहीं मिली है वह हमें
जूलॉजीकल पार्क से चुराया है हमने उसे


चलो अब चल कर/कोई सूरत निकालें
उधार वालों का पता लगाने की
जिन्होंने की नहीं कोशिश
हमारी गली आने की/लोग तो कहते हैं यही
कि उनको आदत है
उधार लेके भूल जाने की।

 

तुम्हे भुलाने की हर कोशिश मेरी न जाने क्यों नाकाम रही
ऐसा उलझा हूं यादों में तेरी न सुबह रही मेरी, न मेरी शाम रही


ख्वाबों की हर एक गली देखी
बाग़ों में खिलती हर एक कली देखी
जो कहते थे, कभी न भूल पाएंगे
उसी के घर अपनी तस्वीर जली देखी।


वो चल पड़े होंगे अपने घर से
महक उठा गरीबख़ाना इस खबर से
और कब तक इंतज़ार किया जाए
पूछ रही हैं नज़रें, हर इक नज़र से

एक हस्ती है जो जान है मेरी
जो आन से भी बढ़कर मान है मेरी।
खुदा हुक्म दे तो कर दूं सजदा उसे
क्योंकि वो कोई और नहीं मां है मेरी।


थक सा गया है
मेरी चाहतों का वजूद,
अब कोई अच्छा भी लगे तो
हम इज़हार नहीं करते।


आज भी उसका इंतजार है
तस्वीर उसकी दिल में बरकरार है।
वह नहीं आता है
उसकी यादों की ही भरमार है।

क्या बात है

क्या बात है

 
 
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शनिवार, 15 जनवरी 2011

शायरी की डायरी

शायरी की डायरी

-तुम्हारे कदमों में मेरी ज़न्नत है
ये कहकर मेरा सीना गर्व से तना था
जब ध्यान से देखा तो उसका पाँव गोबर मे सना था


- अभी तो बाल तुम्हारे छोटे - छोटे थे, अचानक कैसे बड़े हो गये
अरे शैम्पू करके आई थी, हवा चली, ये खड़े हो गये


- तेरे होठों से निकला हर शब्द दुआ बन जाये
मै पूरी क्लास का फूफा और तू उनकी बुआ बन जाये
- तीन दिन पहले उसका पति आलू लेने बाजार गया था अभी तक नही आया
और पत्नी भी इतनी आलसी कि उसने भी तीन दिन से कुछ नही पकाया

- तू अगर मर गई तो यकीनन मै भी मरुँगा
जरुरत से ज्यादा खुशी कैसे बर्दाश्त करुँगा

- मैने उससे कहा प्यार के सजदे में सर झुकाया तो महबूब की नजरो में चढ़ जायेगी
वो बोली सर झुकाया तो सर्वाइकल की प्राब्लम बढ़ जायेगी
- वो जादू जानता है तरबूज के खेत में खरबूजे खाता है
हैरान होने की जरुरत नही घर से ले जाता है
- वो लाये फूलों का गुलदस्ता, कब्र पे चढ़ा दिया
वो तो बेचारा पहले ही मिट्टी में दबा था तुमने और वजन बढ़ा दिया

- जाने क्यों वो करते अब हमारी खूबसूरती का ज़िक्र नही
अरे शादी हो गई, कहा भागेगी, अब उनको भी फिक्र नहीं
आपने तो पत्नी, टोकरी समझ के एक तरफ धर दी
आप काम पे गये और पड़ोसी ने तारीफ शुरु कर दी


१०- बाजार में हमें पीटने को सारे बंदे चिपट गये
पत्नी ने काम वाली बाई को अपनी पुरानी साड़ी दी थी
और हम उसे अपनी पत्नी समझ के पीछे से लिपट गये
११- भिखारी बोला यू हिमाकत की नज़र से ना देख
ब्यूटी क्रीम लगा के मेरा रंग भी गोरा होगा
अपने हाथ में भी एक दिन इमपोर्टेड कटोरा होगा
निकाल ज़ेब से सौ का नोट और ले ले मेरे बाप की दुआ
जा तेरे घर भी मेरे जैसा छोरा होगा


१२- वो मेरे ही सामने नदी मे डूब गई
जो
मुझे ज़ान से प्यारी थी
तैरना तो आता था मुझे, पर क्या करता

जुकाम
की बीमारी थी


१३- पहले तो हम आधी रात तक घुमा करते थे मगर
इस 'गे' संस्कृति ने वो भी छुड़वा दिया

१४- जिसे तुम करते थे जान से भी ज्यादा प्यार
वो तुम्हारे क्रेडिट कार्ड से लाखों की शाँपिंग करके हो गई फरार
अरे धोखा खाने वालो सम्भलों
अपने प्यार को ना यूं पहली नज़र में पास करो
पहले इस्तेमाल करो, फिर विश्वास करो


१५-एक लड़की से मैने रोने का कारण पूछा तो वो बोली
मेरे
पिता चाइनीज थे बेचारे भरी ज़वानी मे हम सबको छोड़ कर चले गये
बस
इसी बात का गम है मैने कहा चुप हो जा बच्ची
चाइना
का माल तो चलता ही कम है

१६- धरती पे तुम, आसमाँ में तुम, पूरे जहाँ में तुम,
फिज़ाओं में तुम, घटाओं में तुम, हवाओं में तुम,
ठीक ही कहा है किसी ने
बुरी आत्मा का कोई ठिकाना नही होता

१७- दिखा बस उसका ही चेहरा, उठाया जब भी मैने ज़ाम
अरे फोटो लगी थी ग्लास पे, वो मुफ्त हुई बदनाम

१८- अब तो उसकी गली से निकलने तक का मन नही करता
उसके बच्चे हमें मामा कहकर पुकारने लगे

१९- प्रेम ही तो चारो तीर्थ धाम है,
लोग करते व्यर्थ ही बदनाम है
गोद में रखा था सर और दर्द खत्म
प्रेमिका है या फिर झंडू बाम है

२०- देसी घी दस रुपये का लेने चला भोला
डिब्बा दिखाके उसको दुकानदार था बोला
यूं घूर ना दस रुपये में क्या मुझको खायेगा
सूंघ ले वेवकूफ बस इतना ही आयेगा

२१- वैसे तो मैं उस पर बहुत मरता हूँ
जहां तक होता उसका पीछा करता हूँ
उसकी गली के कुत्तो की भी परवाह नही मुझको
सिर्फ रैबीज के इन्जेक्शनों से डरता हूँ

२२- बच्चा क्या था जीता जागता शरारतों का समन्दर था
उसकी उछल कूद से बताती है जरुर पिछले जन्म मे बन्दर था

२३- वे अनेक संस्थाओं के प्रधान है, बड़े बड़े मंचों पे जाते है
पर घर पे उनसे ज्यादा इज्जत तो उनके कुत्ते पाते है

२४- कई रात से मै सच कहूँ बिल्कुल ना सोया हूँ
तकिये में मुँह छिपा के मैं रातों में रोया हूँ
ये सुनके वो बेकार में बेहाल हो गई
मच्छर गिरा था आँख में बस लाल हो गई

२५- कोई कहे कि प्यार कर, कोई कहे अन्धकार कर
मैने कहा जो तुम्हारा दिल चाहे, पर पहले मच्छरो को मार कर

२६- मोहब्बत के दुश्मनों को गोली मरवा दो
या फिर उनकी खाल में भूसा भरवा दो
दिन रात मै बस तुम्हे ही काल किया करुँगी
पहले मेरा मोबाईल तो चार्ज़ करवा दो

२७- तेरे प्यार का मुझपर हुआ ये असर है
नौकरी तो छूट गई घर की कसर है
वो भी बिकेगा भैया , अभी क्यों रोता है
तवायफो के प्यार में ऐसा ही होता है

२८- शादी के लिए अग्रेजन हसीना से पूछा आशिक ने, आँखें चार कर
हसीना बोली अभी तो मेरा चौथा ही अफेयर है
थोड़ा इन्तज़ार कर

२९- वो कहती है ना बिछड़ेगें मरके भी हम साथिया
तो फिर खामखाह क्यों अपनी ज़ान दूँ

३०-
वो कहती है ना बिछड़ेगें मरके भी हम साथिया
अरे
तो
क्या आत्माओं की भी शादी होती है

३१- भले ही ना तू प्यार दे भले ही ना दीदार दे
लगता है तू पास है मेरे, बस एक बार मिस काल ही मार दे

३२- हम तेरे शहर मे आऐ है मुसाफिर की तरह
हमको एक बार मुलाकात का मौका दे दे
प्यार करता हू तूमसे पागलों की तरह
आजा मेरे पास अपने बाप को धोखा दे दे

रविवार, 9 जनवरी 2011

उर्दू शायरी में तखल्लुस और कविता में उपनाम की परंपरा

शनिवार, १७ अप्रैल २०१०

उर्दू शायरी में तखल्लुस और कविता में उपनाम की परंपरा

किसी भी कवि सम्मेलन को देखो अथवा मुशायरे को। वहां इस अदब के नामचीन लोग मिल जायेंगे। किसी का नाम भोंपू है तो कोई पागल है। कोई सरोज है तो कोई रंजन। कोई संन्यासी है तो कोई निखिल संन्यासी। लेकिन इस सच्चाई को बहंत कम लोग ही जानते होंगे कि इनके असली नाम कुछ और है और साहित्यिक अथवा मंचीय नाम कुछ और। लेकिन यह लोग साहित्यिक जगत में इन्हीं उपनामों से चर्चित हैं। यही स्थिति उर्दू शायरों की है। इनके उपनाम अथवा तखल्लुस भी इनके मूल नामों से सर्वथा भिन्न हैं। वस्तुतः भाषा किस प्रकार दूसरी भाषा पर अपना अटूट प्रभाव डालती हैं। इसका साक्षात उदाहरण है उर्दू शायरी में तखल्लुस और हिंदी कविता में उपनाम। कहा जाता है कि तखल्लुस की शुरूआत उर्दू शायरी के जन्म से ही है। पहले शायर दक्षिण के एक शासक वली दक्खिनी थे। उर्दू में शायद ही कोई ऐसा शायर होगा जिसका तखल्लुस हो। जैसे बहादुरशाह जफर, रघुपति सहाय उर्फ फिराक गोरखपुरी, जोश मलीहाबादी, आलम फतेहपुरी, मोहम्मद इकबाल हुसैन उर्फ खलिस अकबराबादी, अबरार अहमद उर्फ गौहर अकबराबादी आदि नामों की लम्बी श्रृंखला है। हिंदी में मिलन, सरित, प्रेमी, रंजन, विभोर, बिरजू, आजाद, दानपुरी, दिलवर, संघर्ष, राज, सहज आदि उपनाम ताजनगरी में चर्चित हैं।
आखिर क्या कारण था कि रचनाकारों को अपना उपनाम अथवा तखल्लुस रखना पड़ा। एक जनवादी कवि जो स्वयं अपना नाम बदल कर उपनामधारी हो चुके हैं। उनका कहना है कि हिंदी में अधिकांश गैर ब्राह्मण कवियों ने ही अपने नाम के पीछे उपनाम लगाये। इसका कारण यह था कि ब्राह्मण को तो जन्मजात् योग्य विद्वान माना जाता है। अतः उन्हें अपना मूल नाम अथवा जातिसूचक शब्द हटाने की आवश्यकता ही नहीं थी। लेकिन गैर ब्राह्मणों के साथ यह संभवतः मजबूरी रही होगी। यही कारण है कि हिंदी कवियों में बहुतायत में गैर ब्राह्मणों ने ही उपनामों को अपनाया है। महाकवि निराला के बारे में यह स्पष्ट ही है कि उनका पूरा नाम सूर्यकांत त्रिपाठीनिरालाथा।
उपनामों के बारे में एक अभिमत यह भी है कि अधिकांश मंचीय लोगों ने अपने उपनाम इसलिए रखे जिससे वह जनता में शीघ्र ही लोकप्रिय हो जाये। लोकप्रियता में उनके मूल नाम आड़े आयें। यही कारण है कि गोपाल प्रसाद सक्सैना को पूरा देश नीरज के नाम से ही जानता है। व्यंकट बिहारी को पागल के नाम से, प्रभूदयाल गर्ग को काका हाथरसी, देवीदास शर्मा को निर्भय हाथरसी तथा राज कुमार अग्रवाल को विभांशु दिव्याल के नाम से हिंदी मंच जानता है।
हां इसका अपवाद भी है पं. प्रदीप। जिन्होंने अपने द्वारा रचित भजन और फिल्मी गीतों से देश में धूम मचा दी थी। हे मेरे वतन के लोगों जरा आंखों में भर लो पानी.......जैसे अमर गीत के प्रणेता का वास्तविक नाम पं. रामचन्द द्विवेदी था लेकिन फिल्मी दुनियां में यह नाम अधिक लोगों की जुबां पर शायद ही चढ़ पाये इसलिए उन्हें प्रदीप के नाम से ही मशहूरी मिली। हिंदी रचनाकार पाण्डेय बैचेन शर्माउग्र चंद्रधर शर्मागुलेरीआदि ने उपनाम भले ही लगाया हो लेकिन वह अपने ेजातिसूचक शब्दों का जरूर प्रयोग करते रहे। हिंदी में श्यामनारायण पाण्डेय, सोहन लाल द्विवेदी, द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी, मैथिलीशरण गुप्त, जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, सुमित्रानंदन पंत आदि ने कभी भी अपनामों का सहारा नहीं लिया और अपने मूल नामों से ही हिंदी जगत पर छाये रहे।
जहां तक उर्दू शायरी का सवाल है। इसमें अधिकांश शायर अपने जन्मस्थानसूचक शब्द का ही अधिक प्रयोग करते हैं। जैसे दिल्ली में जन्मे शायर देंहलवी, आगरा के अकबराबादी, बरेली के बरेलवी, लुधियाना के लुधियानिवी, गोरखपुरी, जयपुरी आदि। इसके विपरीत उर्दू शायरी में ऐसे कुछ ही शायर भी हैं जो अपने जन्मस्थान सूचक शब्द को अपने नाम के आगे लगाने में परहेज करते हैं। जैसे के.के. सिंह मयंक, कृष्ण बिहारी नूर, बशीर वद्र आदि।
मशहूर कवि और कथाकार रावी का वास्तविक नाम रामप्रसाद विद्य़ार्थी था। हिंदी जगत के प्रसिद्ध कवि सोम ठाकुर पहले सोम प्रकाश अम्बुज के नाम से जाने जाते थे। इसी प्रकार डा. कुलदीप का मूल नाम डा. मथुरा प्रसाद दुबे थाा। इसी प्रकार वरिष्ठ गीतकार चौ. सुखराम सिंह का सरकारी रिकार्ड में नाम एस.आर. वर्मा है। निखिल संन्यासी के नाम से चर्चित कवि का मूल नाम गोविंद बिहारी सक्सैना है। इसी प्रकार चर्चित गजलकार शलभ भारती का मूल नाम रामसिंह है। इसी श्रंखला में सुभाषी (थानसिंह शर्मा), पंकज (तोताराम शर्मा), रमेश पंडित (आर.सी.शर्मा), एस.के. शर्मा (पहले शिवसागर थे अब शिवसागर शर्मा), डा. राजकुमार रंजन (डा. आरके शर्मा) कैलाश मायावी (कैलाश चौहान) दिनेश संन्यासी (दिनेश चंद गुप्ता), पवन आगरी ( पवन कुमार अ्रग्रवाल), अनिल शनीचर (अनिल कुमार मेहरोत्रा), सुशील सरित (सुशील कुमार सक्सैना), हरि निर्मोही (हरिबाबू शर्मा), राजेन्द्र मिलन (राजेन्द्र सिंह), पहले रमेश शनीचर अब रमेश मुस्कान (रमेश चंद शर्मा) ओम ठाकुर (ओम प्रकाश कुशवाह) राज (एक का नाम राजबहादुर सिंह परमार है तो दूसरे राज का मूल नाम राजकुमार गोयल )

शनिवार, 8 जनवरी 2011

केवल नक़्शे में कश्मीर हमारा है.


जिस केसर की क्यारी को हम कहते अपना ताज हैं.
वहां हिंद को गाली देना फैशन और रिवाज़ है.
पंजाब,सिंध,गुजरात,मराठा वाला गान नहीं होता.
वहां पुस्तकों के प्रष्टों पर हिन्दुस्तान नहीं होता.
भारत का क़ानून वहां पर अर्थहीन बेचारा है.
...सच तो यह है केवल नक़्शे में कश्मीर हमारा है.
.......मदन मोहन समर.

आज सुबह जब पूनम वाला चाँद हुआ आवारा

आज सुबह जब पूनम वाला चाँद हुआ आवारा.
लगा डूबने उसमे खोकर नटखट एक सितारा.
उजियारे ने पूछा मुझसे मन की बात बतायो.
बरबस ही मेरे अधरों पर आया नाम तुम्हारा.
...........मदन मोहन समर.