शुक्रवार, 3 सितंबर 2010

सुभाषित / टिप्पणियां

  • कवि का निर्माण विश्व के किसी भी प्रशिक्षण संस्थान में नहीं होता क्योंकि कविता तो प्रकृति का वरदान है और अभ्यास करते करते व्यक्ति कवि बन जाता है।
  •  कवि चन्द्रबरदाई की पंक्तियॉ “चार बांस, चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण, तहाँ बैठो सुल्तान है, मत चुको चौहान” या बंकिम चन्द्र चटर्जी द्वारा रचित “वन्दे मातरम्” या सुभद्रा कुमारी चौहान की “खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी” या राम प्रसाद बिस्मिल की “सरफरोशी की तम्मना अब हमारे दिल में है” या मैथली शरण गुप्त की “हम क्या थे, क्या हो गये, क्या होना है अभी” और भी अनेक उदाहरण राष्ट्र के आजादी आन्दोलन में कवि और कविता के योगदान के दिये जा सकते है।
  •  आज भी राष्ट्र अनेक राष्ट्रीय आपदाओं जैसे – आतंकवाद, अलगाववाद, माओवाद, घुसपैठ, सीमाओं पर बढते कुछ पड़ोसी देशों से खतरे, बढती जनसंख्या, धर्मान्तरण (मतान्तरण), अन्तर्राष्ट्रीय ताकतों के अन्दरूनी षड़यन्त्र, बदलता जनसंख्या का स्वरूप, अल्पसंख्यकवाद, तुष्टीकरण की वोट राजनीति, गऊवध का न रुकना, हिन्दुत्व को संकुचित बताना, प्रगतिशीलता के नाम पर देवी-देवताओं का अपमान, कैलाश मानसरोवर व अन्य भू-भाग चीनी कब्जे में, अफजल को फांसी की बजाय माफी, कंधार प्रकरण में आतंकवादी छोड़ना, वन्दे मातरम् न गाना, रामसेतु तोड़ना, एक राष्ट्र व राष्ट्रीयता का अभाव, समान कानून संहिता के अभाव में बिखरता व भ्रमित समाज, जातिवादी विषमता का दंश, अपराध, भ्रष्टाचार, घोटाले, व्यसन, अशिक्षा, प्रदूषण, सांस्कृतिक जीवन मूल्यों में गिरावट, उपभोक्तावाद आदि-आदि से घिरा अपना राष्ट्र मुक्ति के लिए छटपटा रहा है।
  • एक एक कविता कई भाषणों का निचोड़ होती है क्योंकि कविता में रोचकता होती है इसलिये युवा पीढ़ी सहजता से कविता की ओर आकर्षित होती है। ता कई भाषणों का निचोड़ होती है क्योंकि कविता में रोचकता होती है इसलिये युवा पीढ़ी सहजता से कविता की ओर आकर्षित होती है।
  •  नादब्रह्म शब्दब्रह्म ब्रह्म की उपासना सप्त स्वरन से करूँ षड्ज की आराधना
  •  घर से निकलते हुए दरवाज़े की सांकल चढ़ाई तो एकटक देखते हुए सांकल ने कहा, घर जल्दी आ जाना, तुम जब तक नहीं लौटते मेरी जान अटकी रहती है
  •  उफने हुए दूध को आग से उतारा तो उसपे मलाई जमने लगी, याद आया जब जब पूरी निष्ठा से मेहनत करके मैंने सांस ली, तो उपलब्धियां जगमगाने लगीं
  •  याद रखियेगा साहब झूट बिकता है, पर ये भी मत भूलियेगा के सच टिकता है,
  •  उपदेश, जिसे दूसरों पर थोपना - बड़ा सरल ! यथार्थ जिसे खुद भोगना - बड़ा कठिन ! 'पं विनोद शर्मा' के काव्य संग्रह अनुभूति से
  •  अगर आप जीवन का मर्म समझना चाहते हैं तो कई बार मरने के लिए तैयार हो जाइए,क्योंकि जो कर कर के मिले वो कर्म,जो धर धर के मिले वो धर्म और जो मर मर के मिले वो मर्म.
  •  बोलते साथ मित्र कम और शत्रु ज्यादा बनते हैं, याद करिए सबसे ज्यादा प्यार
    आपको कब मिला, जब आप गोद में खेलते थे .. ईश्वर भी पहला संकेत यही देते
    हैं, खाओ, पीओ, मस्ती करो, पर बोलो 'रुक' कर,
    सबसे पहली बार हम सबने एक डेढ़ साल बाद ही बोला था . . .
  •  दो चेले गुरु के पाँव दबा रहे थे, एक ने दूसरे से कहा, ऐसा करते हैं मैं बांया पाँव ले लेता हूँ दाहिना तुम दबाओ, कुछ देर बाद गुरु ने करवट बदली,और बस ठन गयी दोनों में, बांये ने दाहिने पाँव की और दाहिने वाले ने बांये पाँव की खूब पिटाई की..... पिटा कौन? यही संसार का कडुवा सच बन गया है, दो कौमें लड़ती हैं और घायल भगवान् होता है
  •   पं नरेन्द्र शर्मा जी से मैंने पुछा था , पं. जी प्यार किसे कहते हैं ?, उन्होंने उत्तर दिया,' जब किसी की बुराई भी आपको अच्छी लगने लगे तो समझो प्यार हो गया'
  •   हर रात, सोने से पहले, आत्म विश्लेषण ज़रूर करता हूँ ताकि सुबह, आईने में खुद से नज़र 'मिला' सकूँ
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